Evolutionary Model in Hindi

Evolutionary Model in Hindi

Evolutionary  मॉडल सॉफ्टवेयर बनाने का एक तरीका है जिसमें सॉफ्टवेयर को छोटे-छोटे हिस्सों (parts) में बनाया जाता है। हर हिस्से को बनाने के बाद उसे यूजर्स (users) को दिखाया जाता है और उनकी राय (feedback) ली जाती है।

इस feedback के आधार पर सॉफ्टवेयर improve किया जाता है। इस तरह, सॉफ्टवेयर धीरे-धीरे पूरा होता है।

दुसरे शब्दों में Evolutionary प्रोसेस मॉडल सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट का एक तरीका है जिसमें सॉफ्टवेयर को छोटे-छोटे चरणों (steps) में विकसित (develop) किया जाता है।

प्रत्येक चरण में सॉफ्टवेयर में improvements किए जाते हैं और उसे धीरे-धीरे पूरा किया जाता है। यह मॉडल लचीला (flexible) होता है और इसमें बदलाव (changes) करना आसान होता है।

एवोल्यूशनरी मॉडल पारंपरिक (traditional) वॉटरफॉल मॉडल (Waterfall Model) की कमियों को दूर करने के लिए बनाया गया था।

पारंपरिक मॉडल में सॉफ्टवेयर को एक बार में पूरा करना पड़ता था, जिसमें बदलाव करना मुश्किल होता था। एवोल्यूशनरी मॉडल ने इस समस्या को हल किया और सॉफ्टवेयर को धीरे-धीरे विकसित करने का तरीका दिया ।

Phases of evolutionary

1. आवश्यकताओं का संग्रह (Requirements Gathering):

  • उपयोगकर्ताओं (users) से जरूरतें (needs) समझी जाती हैं। 
  • एक प्रारंभिक (initial) प्रोटोटाइप (prototype) बनाया जाता है। 
  • Clinet से उनकी आवश्यकताओं को जाना जाता है की उन्हे क्या सॉफ्टवेयर चाहिए कैसा सॉफ्टवेयर
  • उसमे क्या क्या गुण होने चाहिए कौन कौन से function होने चाहिए इन सभी की जानकारी प्राप्त की जाती है ।

2. डिज़ाइन और विकास (Design and Development):

  •   प्रोटोटाइप को धीरे-धीरे विकसित किया जाता है। 
  •  हर चरण में उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया (feedback) ली जाती है।

साथ ही इस चरण मे सॉफ्टवेयर का डिज़ाइन किया जाता है और डिज़ाइन के बड़ user से feedback ली जाती है यदि customer द्वारा बता दिया गया की डिज़ाइन सही है तब implementation  का कार्य किया जाता है जहाँ coding की जाती है

इस प्रकार से इस चरण मे डिज़ाइन व डेवलपमेंट का कार्य किया जाता है

3. परीक्षण (Testing):

  • हर चरण में सॉफ्टवेयर का परीक्षण किया जाता है। 
  • खामियों (errors) को ठीक किया जाता है। 
  • सॉफ्टवेयर मे किसी भी प्रकार की त्रुटि eror तो नही है साथ ही सॉफ्टवेयर customer  के अनुरूप बना है या नही इन सब का testing जाँच की जाती है

4. सुधार और अपडेट (Improvement and Updates):

  • उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया के आधार पर सॉफ्टवेयर में सुधार किए जाते हैं। 
  • नए फीचर्स (features) जोड़े जाते हैं।
  • समय समय पर सॉफ्टवेयर को update किये जाते है
एवोल्यूशनरी मॉडल कैसे काम करता है?
  • शुरुआत में कुछ बेसिक फीचर्स (basic features) बनाए जाते हैं।
  • यूजर्स को दिखाया जाता है और उनकी राय (feedback) ली जाती है।
  • यूजर्स की राय (feedback) के आधार पर सॉफ्टवेयर में सुधार (improvements) किया जाता है।
  • नए फीचर्स (features) जोड़े जाते हैं और फिर से यूजर्स को दिखाया जाता है।
  • यह प्रक्रिया (process) तब तक दोहराई (repeat) जाती है जब तक सॉफ्टवेयर पूरा नहीं हो जाता।

Advantages of Evolutionary Model

  1. बदलती जरूरतों के लिए लचीलापन (Flexibility): अगर प्रोजेक्ट (project) के दौरान जरूरतें (requirements) बदलती हैं, तो इसे आसानी से अपडेट (update) किया जा सकता है।
  2. शुरुआत में ही काम करने लायक सॉफ्टवेयर (Working Software Early): कोर फीचर्स (core features) जल्दी डिलीवर (deliver) किए जा सकते हैं।
  3. यूजर्स की फीडबैक (User Feedback): यूजर्स की राय (feedback) से सॉफ्टवेयर बेहतर (better) बनता है।
  4. जोखिम कम होता है (Reduced Risk): समस्याओं (problems) को शुरुआत में ही पहचाना (identify) और हल (solve) किया जा सकता है।

Disadvantages of Evolutionary Model

  1. जटिल प्रबंधन (Complex Management): छोटे-छोटे हिस्सों (parts) को मैनेज (manage) करना मुश्किल हो सकता है।
  2. लागत और समय (Cost and Time): लगातार सुधार (continuous improvements) से लागत (cost) और समय (time) बढ़ सकता है।
  3. यूजर्स की बदलती मांग (Changing User Demands): यूजर्स की मांग (demands) बदलने से प्रोजेक्ट (project) प्रभावित (affected) हो सकता है।

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