मानव पाचन तंत्र (Human Digestive System In Hindi)

मानव पाचन तंत्र (Human Digestive System In Hindi) हमारे शरीर की वह प्रक्रिया है जो भोजन को चबाकर छोटे-छोटे पोषक तत्वों में बदलकर शरीर में प्रवेश योग्य बनाती है।

यह प्रक्रिया मुँह से शुरू होकर गुदा तक के अंगों से मिलकर बनी होती है, और भोजन को यांत्रिक तथा रासायनिक रूप से पचा कर उसे रक्त में अवशोषित कराती है। पाचन तंत्र के माध्यम से हमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन और खनिज प्राप्त होते हैं, जो ऊर्जा देने, ऊतकों के निर्माण एवं मरम्मत तथा विभिन्न शरीर-क्रियाओं के लिए आवश्यक होते हैं।

उदाहरण के लिए, कार्बोहाइड्रेट से शरीर को त्वरित ऊर्जा मिलती है, प्रोटीन मांसपेशियों व एंजाइमों के निर्माण में मदद करता है, और वसा ऊर्जा भंडारण तथा कोशिका झिल्ली का निर्माण करता है।

विटामिन एवं खनिज (जैसे कैल्शियम, लोहा) शरीर के विकास, प्रतिरक्षा प्रणाली और चयापचय क्रियाओं में भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार, मानव पाचन तंत्र भोजन को इस रूप में बदलता है कि शरीर इसे प्रभावी ढंग से उपयोग कर सके और स्वस्थ जीवन यापन हो।

मानव पाचन तंत्र के मुख्य अंग

मानव पाचन तंत्र में दो प्रकार के अंग होते हैं: (1) भोजन नली (अलिमेंटरी कैनाल) और (2) सहायक ग्रंथियाँ।

भोजन नली में मुँह (मुख गुहा), ग्रसनी (भोजन नली), आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय एवं गुदा शामिल हैं।

सहायक ग्रंथियों में दांत, जीभ, लार ग्रंथियाँ, यकृत (लीवर), अग्न्याशय (पैंक्रियाज) तथा पित्ताशय होते हैं।

Human Digestive System In Hindi

प्रत्येक अंग का अपना विशेष कार्य होता है:

मुँह एवं मुँह गुहा: भोजन पहले मुँह में आता है, जहाँ दांतों द्वारा चबाकर छोटे टुकड़ों में बदलता है। इस क्रिया को यांत्रिक पाचन कहते हैं। मुंह में छिद्रित लार ग्रंथियाँ अमाइलेज नामक एंजाइम स्रावित करती हैं, जो भोजन में स्टार्च को टूटने लगती हैं।

जीभ भोजन को मुँह में घुमा-फिराकर चबाने में सहायता करती है और स्वाद ग्रंथियाँ (टेस्ट बड्स) भोजन का स्वाद पहचानती हैं। मानव में कुल 32 दांत होते हैं, जो काटने (incisors), फाड़ने (canines) तथा चबाने (premolars और molars) का कार्य करते हैं। लार अम्लीय नहीं होती, इसका pH लगभग तटस्थ होता है, जिससे भोजन गले के लिए तैयार हो जाता है।

ग्रसनी (भोजन नली): चबाया हुआ भोजन ग्रसनी (ऐसोफैगस) से होकर आमाशय में जाता है। ग्रसनी की दीवारों में चिकनी मांसपेशियों की तरंग जैसी लहरें (पेरिस्टालिसिस) भोजन को नीचे की ओर ढकेलती हैं। ग्रसनी में रासायनिक पाचन नहीं होता, केवल भोजन का परिवहन होता है।

आमाशय (Stomach): आमाशय एक फैलने योग्य मांसल थैला है जहाँ भोजन जमा होता है। यहाँ जठर रस स्रावित होता है, जिसमें मुख्यतः हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) और पेप्सिन नामक प्रोटीन-पचाने वाला एंजाइम होता है।

यह अम्ल बहुत तीव्र होता है (आमाशय का pH लगभग 1.5–3.5 होता है), जो भोजन में मौजूद प्रोटीनों को तोड़ने में मदद करता है और हानिकारक जीवाणुओं को मारता है।

आमाशय की मांसपेशियाँ भोजन को मंथन (कुलन) कर के उसमें रस अच्छी तरह मिला देती हैं, जिससे भोजन चाइम (ठोस से गाढ़े तरल जैसा पदार्थ) बन जाता है। आमाशय में भोजन आमतौर पर कुछ घंटे रहकर आगे की प्रक्रिया के लिए तैयार होता है।

छोटी आंत: छोटी आंत मानव पाचन तंत्र का सबसे लंबा भाग है और यह तीन खण्डों में विभाजित होती है: ग्रहणी (डुओडेनम), अग्रांत्र (जेयूनम) और अगम्यांत्र (इलियम)। इसकी औसत लंबाई लगभग 6–7 मीटर होती है।

छोटी आंत में भोजन का अधिकांश रासायनिक पाचन एवं पोषक तत्वों का अवशोषण होता है। छोटी आंत के आरंभिक भाग में यकृत द्वारा निर्मित पित्त व पित्ताशय से निकलने वाला बाइल इमल्सीफायर वसा कणों को छोटे कणों में विभाजित करता है। साथ ही पैंक्रियास से स्रावित पैंक्रियाटिक जूस में एमाइलेज, ट्रिप्सिनोजेन (जेसे ट्रिप्सिन) व लिपेज जैसे एंजाइम होते हैं, जो क्रमशः स्टार्च, प्रोटीन और वसा का पाचन करते हैं।

छोटी आंत की भीतरी परत पर विली और माइक्रोविली नामक सूक्ष्म झिल्लियाँ होती हैं, जो सतह क्षेत्र को कई गुना बढ़ा देती हैं। इसी वजह से छोटी आंत से ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, फैटी एसिड, विटामिन आदि पोषक तत्व आसानी से अवशोषित हो जाते हैं।

बड़ी आंत: छोटी आंत में अवशोषण के बाद बची सामग्री बड़ी आंत (कोलन) में जाती है। बड़ी आंत की लंबाई औसतन लगभग 1.5–1.8 मीटर होती है।

इसका मुख्य कार्य भोजन से अत्यधिक पानी और लवणों को अवशोषित करके शेष अपशिष्ट मल बनाना है। बड़ी आंत में सहजीवी सूक्ष्मजीव (गट फ्लोरा) की प्रचुर संख्या होती है।

ये बैक्टीरिया अपशिष्ट को विघटित करते हैं और विटामिन K तथा कुछ B-विटामिन बनाते हैं, जिन्हें शरीर अवशोषित कर लेता है। इन्हें कुल मिलाकर गट माइक्रोबायोम कहते हैं, जो पाचन तंत्र के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मलाशय और गुदा: बड़ी आंत के अंत में मलाशय (rectum) होता है जहाँ पका हुआ मल जमा होता है। मलाशय में मल की मात्रा बढ़ने पर गुदा (anus) की पार्श्व मांसपेशियाँ संकेत देती हैं। जब मलाशय पूरी तरह भर जाता है, तब गुदा द्वार खुलकर मल शरीर से बाहर निकलता है। इस चरण को उत्सर्जन (इग्जीक्यूशन) कहते हैं।

चित्र 1: मानव पाचन तंत्र का आरेख। इस चित्र में मानव पाचन तंत्र के मुख, ग्रसनी, आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत आदि प्रमुख अंगों को दिखाया गया है। प्रत्येक अंग की संरचना उसके कार्य से मेल खाती है, जैसे मुँह में दाँत भोजन को चबाने के लिए होते हैं और आमाशय में अम्लीय रस प्रोटीन पचाने में सहायक होता है।

पाचन की प्रक्रिया

पाचन की प्रक्रिया को यांत्रिक पाचन और रासायनिक पाचन में बांटा जाता है। यांत्रिक पाचन में भोजन को भौतिक रूप से छोटे-छोटे टुकड़ों में बदलना शामिल है, जैसे मुँह में दांतों से चबाना और पेट में भोजन का मंथन।

रासायनिक पाचन में एंजाइम और अम्ल का उपयोग होता है, जो भोजन के अणुओं को टूटने वाले सरल भागों में विभाजित करते हैं। उदाहरणार्थ, मुँह में लार के एमाइलेज एंजाइम के कारण स्टार्च टूटना शुरू हो जाता है।

आमाशय में छिड़का गया जठर रस प्रोटीन को टूटने में लगाता है, और छोटी आंत में पैंक्रियाटिक जूस के कई एंजाइम (एमाइलेज, ट्रिप्सिन, लिपेज आदि) भूखे अणुओं को पूरी तरह छोटे घटकों में बदलते हैं। इस प्रकार, भोजन अंततः ग्लूकोज, अमीनो अम्ल और फैटी एसिड आदि में विभाजित हो जाता है, जिन्हें शरीर अवशोषित कर लेता है।

पाचन की संपूर्ण प्रक्रिया में भोजन सबसे पहले मुँह से आमाशय और छोटी आंत तक यात्रा करता है, जहाँ उसका अधिकांश पाचन और पोषक तत्वों का अवशोषण होता है।

आमाशय और छोटी आंत की दीवार पर मौजूद लवण और एंजाइम मिलकर पाचन को पूरा करते हैं। अनअवशोषित अपशिष्ट बड़ी आंत में जमा होता है, जहाँ से अधिकतर पानी निकल जाने पर मल बनकर गुदा मार्ग से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

प्रमुख पाचक रस और उनके कार्य

मानव शरीर में विभिन्न अंगों द्वारा पाचन के लिए विशेष पाचक रस बनाए जाते हैं, जिनमें से प्रमुख हैं:

  • लार (Saliva): मुँह की लार ग्रंथियाँ स्टार्च को टूटने में मदद करती हैं। लार में एमाइलेज होता है जो स्टार्च को माल्टोज़ में तोड़ देता है। यह भोजन को नरम बनाती है और ग्रसनी द्वारा आगे ले जाने योग्य बनाती है।
  • जठर रस (Gastric Juice): आमाशय से स्रावित यह रस मुख्यतः हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) और पेप्सिन यौगिक होता है। यह अम्ल प्रोटीन को तोड़ने में सहायक होता है और पथogen को मारता है। पेप्सिन एंजाइम प्रोटीन को अमीनो अम्लों में विभाजित करता है, जिससे प्रोटीन का पाचन शुरू होता है।
  • पित्त (Bile): यकृत (लीवर) द्वारा निर्मित पित्त पित्ताशय में संग्रहित रहता है। भोजन छोटी आंत (ग्रहणी) में पहुँचते ही पित्ताशय से पित्त निकलता है। पित्त वसा को छोटे कणों में विभाजित करके इमल्सीफाई करता है, जिससे लिपेज एंजाइम वसाओं को ग्लिसरॉल और फैटी एसिड में आसानी से तोड़ पाता है। पित्त का अपना कोई एंजाइम नहीं होता, फिर भी यह वसा पाचन के लिए आवश्यक है।
  • पैंक्रियाटिक जूस (Pancreatic Juice): अग्न्याशय से स्रावित यह रस कई एंजाइमों से भरपूर होता है। इसमें अमाइलेज (स्टार्च के लिए), ट्रिप्सिनोजेन (प्रोटीन के लिए), इलास्टेज, लिपेज (वसा के लिए) इत्यादि शामिल हैं। ये एंजाइम भोजन के अधिकांश रासायनिक पाचन को पूर्ण करते हैं।
  • आंत्र रस (Intestinal Juice): छोटी आंत की भीतरी परत से स्रावित यह रस लैक्टेज़, माल्टेज़, पेप्टिडेज़ इत्यादि एंजाइम देता है, जो शेष शर्करा और पेप्टाइड्स को तोड़ते हैं, जिससे भोजन का पाचन पूरी तरह पूरा हो जाता है।
अंग/ग्रंथिस्रावमुख्य कार्य
मुँह (मुख गुहा)लारस्टार्च का प्रारंभिक पाचन
आमाशयजठर रसप्रोटीन का पाचन
यकृत (लीवर)पित्तवसा का इमल्सीकरण (विभाजन)
अग्न्याशय (पैंक्रियाज)पैंक्रियाटिक जूसस्टार्च, प्रोटीन, वसा का पाचन
छोटी आंतआंत्र रसशेष शर्करा और पेप्टाइड्स का पाचन
बड़ी आंतपानी एवं लवण का पुनः अवशोषण, मल बनाना

पोषक तत्वों का अवशोषण

पाचन के पश्चात भोजन के सरल अणु (ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, फैटी एसिड, ग्लिसरॉल, विटामिन, खनिज आदि) छोटी आंत की दीवार से होकर रक्त और लसीका प्रवाह में अवशोषित हो जाते हैं।

यह अवशोषण विशेषकर छोटी आंत के अग्रभाग (ग्रहणी) में होता है, क्योंकि यहाँ सतह क्षेत्र विली और माइक्रोविली से बहुत अधिक बढ़ा होता है। अवशोषित ग्लूकोज और अमीनो अम्ल सीधे रक्त में जाते हैं, जबकि वसा के टूटे हुए घटक लसीका के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं।

विटामिन और खनिज जैसे लवण भी इसी चरण में अवशोषित होते हैं। बड़ी आंत मुख्यतः पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स का पुनः अवशोषण करती है, जिससे मल सख्त होकर पका बनता है। इस प्रकार शरीर को ऊर्जा, अंगों के निर्माण के लिए अमीनो अम्ल, कोशिकाओं के लिए फैटी एसिड, तथा विटामिन और खनिज मिलते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं।

पाचन तंत्र के रोग और देखभाल

पाचन तंत्र से संबंधित कुछ सामान्य समस्याओं में अपच, एसिडिटी, कब्ज़ और दस्त आदि हैं। असंतुलित भोजन, तनाव, अत्यधिक मसालेदार भोजन, या पानी की कमी के कारण ये विकार हो सकते हैं। उदाहरणतः तीखा भोजन या अधिक पैक्ड फूड लेने से अम्ल बढ़ सकता है, जिससे जलन की समस्या हो जाती है।

इसलिए संतुलित आहार लेना आवश्यक है: प्रत्येक भोजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा के साथ पर्याप्त फल-सब्जियाँ एवं रेशे शामिल हों। रेशेदार आहार (भूसी, ताजे फल, हरी सब्जियाँ) कब्ज़ को रोकता है और पाचन को सुचारू रखता है। साथ ही दिन भर में पर्याप्त पानी पीना चाहिए, ताकि भोजन नरम बना रहे और मल आसानी से बाहर निकले।

भोजन को धीरे-धीरे अच्छी तरह चबाकर खाना चाहिए, जिससे लार अच्छी तरह मिले और खाना अच्छी तरह पचे। दाँतों की सफाई भी पाचन के लिए जरूरी है क्योंकि चबाने की क्रिया यहीं से शुरू होती है। अंत में, धूम्रपान और अत्यधिक शराब से बचना चाहिए, क्योंकि ये पाचन क्रिया को प्रभावित कर सकते हैं। नियमित हल्का व्यायाम (जैसे चलना) करने से पेट की मांसपेशियाँ सक्रिय रहती हैं और पाचन बेहतर होता है।

जंतु कोशिका – Animal Cell In Hindi

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