Incremental Process Model in Hindi
यह Software Development का एक तरीका है, जहाँ प्रोजेक्ट को छोटे-छोटे हिस्सों (Modules) में बाँटकर बनाया जाता है। हर हिस्सा पूरा होने पर उसे यूजर्स को दिया जाता है, और धीरे-धीरे पूरा सिस्टम तैयार होता है।
उदाहरण: घर बनाने जैसा: पहले नींव, फिर दीवारें, फिर छत हर चरण में काम पूरा होता जाता है!
यह Software Development की एक प्रक्रिया है जहाँ प्रोडक्ट को छोटे-छोटे हिस्सों (increments) में बनाया जाता है। हर increment में नई functionalities जोड़ी जाती है, और हर steps के बाद यूजर्स को काम करने लायक version मिलता है।
सॉफ्टवेयर बनाने का एक सॉफ्टवेयर प्रोसेस मॉडल है जिसमें बहुत सारे steps होते हैं जिनके माध्यम से सॉफ्टवेयर बनाया जाता है। इसमें पूरे सॉफ्टवेयर इकट्ठा ना बनाकर module by module खंड-खंड में बनाया जाता है और increments किया जाता है।
इंक्रीमेंटल मॉडल में सॉफ़्टवेयर को चरणबद्ध तरीके से बनाया जाता है। हर चरण में एक नया फीचर जोड़कर प्रोडक्ट को धीरे-धीरे पूरा किया जाता है।
उदाहरण: मोबाइल ऐप बनाने में पहले लॉगिन/साइनअप, फिर प्रोफाइल सेटअप, और फिर ऑर्डर पेमेंट सिस्टम डेवलप करना।
अन्य उदाहरण से समझें तो
यदि हमें एक बड़ा प्रोजेक्ट बनाना है जो कि है लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम कॉलेज या यूनिवर्सिटी का लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम या कॉलेज मैनेजमेंट सिस्टम, उसमें College, University, Teachers, Student, Attendance सभी के Module होंगे। तो सभी को एक साथ पहले स्टूडेंट Module बनाते हैं। यदि स्टूडेंट Module सही से काम कर रहा है, तो फिर टीचर Module बनाते हैं और स्टूडेंट Module और टीचर Module को एक साथ छोड़ देते हैं।
इस तरह से इंक्रीमेंट करके सॉफ्टवेयर बनाया जाता है।
History:
1970 के दशक में Waterfall Model की कमियों (जैसे लचीलेपन की कमी) को दूर करने के लिए इंक्रीमेंटल Model विकसित किया गया। यह मॉडल रिस्क मैनेजमेंट और यूजर फीडबैक को प्राथमिकता देता है।
Incremental Process Model Phases:
1. Requirement Analysis:
पहले यह पता लगाएँ कि ग्राहक को क्या-क्या चाहिए। यह पहला फेज होता है जिसमें क्लाइंट जैसा सॉफ्टवेयर बनवाना चाहते हैं, उससे संबंधित जानकारी इकट्ठा किया जाता है। सबसे जरूरी फीचर्स को पहले बनाने की योजना बनाएँ।
2. Design & Development:
हर module का अलग डिज़ाइन बनाएँ और कोड लिखें। इस फेज में सॉफ्टवेयर की डिज़ाइन तैयार की जाती है। अलग-अलग प्रकार की डिज़ाइन तैयार की जाती है। डिज़ाइन तैयार हो जाने के बाद कोडिंग की जाती है, प्रोग्राम कोड लिखा जाता है।
जैसे: ऐप में पहले लॉगिन फीचर, फिर प्रोफाइल सेटअप।
3. Testing:
हर मॉड्यूल को अलग से टेस्ट करें। पुराने फीचर्स भी चेक करें ताकि नए से कोई दिक्कत न हो। जब पूरी तरह से कोडिंग लिखी जा चुकी तब उसकी जाँच की जाती है कि कोडिंग सही है या नहीं, सही प्रकार से कार्य कर रहा है या नहीं, यूजर के अनुरूप बना हुआ है या नहीं, इस बात की जाँच टेस्टिंग की जाती है।
4. Implementation:
हर step के बाद यूजर्स को वर्किंग सिस्टम दें। फीडबैक लेकर अगले मॉड्यूल में सुधार करें।
जब सॉफ़्टवेयर का आखिरी वर्जन (version n) पूरा हो जाता है, तो उसे क्लाइंट के पास भेज दिया जाता है (डिप्लॉय किया जाता है)। इसका मतलब है कि अब वह सॉफ़्टवेयर क्लाइंट के सिस्टम पर इंस्टॉल हो जाता है और उसे इस्तेमाल करने के लिए तैयार होता है।

Advantages:
1. यूजर्स को जल्दी मिलता है प्रोडक्ट।
2. रिस्क कम होता है।
3. ग्राहक की ज़रूरतें बदलने पर लचीलापन।
4. प्राथमिकता के आधार पर काम करना आसान।
5. गलतियाँ कम: हर मॉड्यूल अलग से टेस्ट होने से एरर जल्दी पकड़े जाते हैं।
6. यूजर्स खुश: वे बीच-बीच में प्रोडक्ट देखकर फीडबैक दे सकते हैं।
7. लचीलापन: नई जरूरतें आने पर आसानी से जोड़ सकते हैं।
8. रिस्क मैनेजमेंट: एक मॉड्यूल फेल होने से पूरा प्रोजेक्ट नहीं रुकता।
Disadvantage:
1. हर इंक्रीमेंट के लिए अलग प्लानिंग और टेस्टिंग की ज़रूरत।
2. बार-बार टेस्टिंग से कॉस्ट बढ़ सकती है।
3. अलग-अलग इंक्रीमेंट्स को जोड़ने में दिक्कत।
4. हर चरण का अलग डॉक्युमेंटेशन बनाना पड़ता है।
5. प्लानिंग जटिल: हर मॉड्यूल के लिए अलग डिज़ाइन और टेस्टिंग चाहिए।
6. कॉस्ट ज्यादा: बार-बार टेस्टिंग और डिलीवरी से खर्च बढ़ता है।
7. इंटीग्रेशन दिक्कत: अलग-अलग मॉड्यूल्स को जोड़ने में मेहनत लगती है।
8. डॉक्युमेंटेशन: हर चरण का अलग रिकॉर्ड रखना पड़ता है।
कहाँ इस्तेमाल करें :
- बड़े और कॉम्प्लेक्स प्रोजेक्ट्स।
- जब ग्राहक को जल्दी प्रोडक्ट चाहिए (MVP)।
- जहाँ फीचर्स की प्राथमिकता तय करनी हो।
निष्कर्ष :
इंक्रीमेंटल मॉडल “कदम-दर-कदम” सॉफ़्टवेयर बनाने का तरीका है। इसमें जोखिम कम होते हैं, और ग्राहक को जल्दी प्रोडक्ट मिल जाता है। लेकिन अच्छी प्लानिंग न होने पर यह महँगा और समयखर्ची हो सकता है। याद रखें: यह मॉडल उसी तरह काम करता है जैसे पहेली (पजल) को टुकड़े-टुकड़े में जोड़ना।
इंक्रीमेंटल मॉडल, सॉफ़्टवेयर बनाने का “कदम-दर-कदम” तरीका है। जैसे घर की नींव, दीवारें, फिर छत बनाना। हर चरण में काम पूरा होता जाता है!