IPv4 and IPv6 deference – IPv4 और IPv6 में क्या अंतर है?
IPv4 और IPv6 में क्या अंतर है?
IP ADDRESS
IP Address इंटरनेट पर आपकी डिवाइस का डिजिटल पता होता है। बिना इसके, कोई भी डिवाइस इंटरनेट पर डेटा प्राप्त नहीं कर सकती।
इंटरनेट पर आप जो भी वेबसाइट खोलते हैं, वीडियो देखते हैं या कोई ऐप इस्तेमाल करते हैं, वह सब कुछ IP Address की मदद से ही संभव होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये IPv4 और IPv6 क्या होते हैं?

IP का मतलब होता है Internet Protocol – यह एक ऐसा नियम है जिससे इंटरनेट पर जुड़े हर डिवाइस को एक यूनिक एड्रेस मिलता है। यह ठीक वैसे ही होता है जैसे आपके घर का पता।
IP Address के प्रकार दो तरह से बाँटे जाते हैं:
IP एड्रेस के मुख्य रूप से दो वर्शन (version) होते हैं जो वर्तमान में उपयोग में हैं
संरचना (Structure) के आधार पर इन्हे दो भागो मे बांटा गया है
IPv4 और IPv6
IPv4 क्या है?
IPv4 का पूरा नाम Internet Protocol Version 4 है। इसे 1981 में पेश किया गया था और यह आज भी सबसे व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला IP संस्करण बना हुआ है।
यह IP एड्रेस का चौथा संस्करण है और इंटरनेट के शुरुआती दिनों से इस्तेमाल हो रहा है। इसकी संरचना को डॉटेड डेसिमल नोटेशन में दर्शाया जाता है, जैसे कि 192.168.1.10।
यह 32-बिट एड्रेसिंग स्कीम पर काम करता है।
इसमें कुल लगभग 4.3 अरब यूनिक IP एड्रेस उपलब्ध होते हैं।
IPv4 एड्रेस कुछ इस तरह दिखता है: 192.168.0.1
IPv4 की सबसे बड़ी सीमा यह है कि जैसे-जैसे इंटरनेट पर डिवाइस बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे यह एड्रेस खत्म हो रहे हैं।
IPv4 एड्रेस में दो मुख्य भाग होते हैं:
- नेटवर्क भाग (Network Part): यह नेटवर्क की पहचान करता है।
- होस्ट भाग (Host Part): यह उस नेटवर्क के भीतर विशिष्ट डिवाइस की पहचान करता है।
इंटरनेट के विस्तार के साथ, IPv4 एड्रेस की संख्या कम पड़ने लगी, क्योंकि दुनिया में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं और कनेक्टेड डिवाइसों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी
IPv6 क्या है?
IPv6 का मतलब है Internet Protocol Version 6। यह 1998 में लॉन्च किया गया था ताकि IPv4 की सीमाओं को दूर किया जा सके। यह IP एड्रेस का नवीनतम संस्करण है,
यह 128-बिट एड्रेसिंग का इस्तेमाल करता है।
इसमें 340 अंडेसिलियन (340 followed by 36 zeros) IP एड्रेस उपलब्ध हैं।
IPv6 एड्रेस कुछ इस तरह दिखता है: 2001:0db8:85a3:0000:0000:8a2e:0370:7334
IPv6 को भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है ताकि किसी भी समय IP एड्रेस की कमी ना हो।
IPv4 और IPv6 में अंतर – IPv4 vs IPv6 Comparison
1. टेक्नोलॉजी की उम्र (Technology Generation)
IPv4: यह पुरानी टेक्नोलॉजी है जिसे 1980 के दशक में लॉन्च किया गया था।
IPv6: यह नई और उन्नत टेक्नोलॉजी है जो IPv4 की सीमाओं को दूर करने के लिए विकसित की गई है।
2. एड्रेस की लंबाई (Address Length)
IPv4: 32-बिट एड्रेसिंग स्कीम का उपयोग करता है।
IPv6: 128-बिट एड्रेसिंग का इस्तेमाल करता है, जिससे यह कहीं ज्यादा IP एड्रेस सपोर्ट करता है।
3. IP एड्रेस की संख्या (Number of IP Addresses)
IPv4: करीब 4.3 अरब (4.3 Billion) एड्रेस ही उपलब्ध हैं।
IPv6: खरबों-खरब (Virtually Unlimited) एड्रेस उपलब्ध हैं, जो आने वाले कई वर्षों तक पर्याप्त हैं।
4. एड्रेस फॉर्मेट (Address Format)
IPv4: IP एड्रेस को डॉट्स (.) से अलग किया जाता है, जैसे: 192.168.1.1
IPv6: एड्रेस को कोलन (:) से अलग किया जाता है, जैसे: 2001:0db8::1
5. डेटा फॉर्म (Data Representation)
IPv4: एड्रेस को Decimal फॉर्म में लिखा जाता है।
IPv6: एड्रेस Hexadecimal फॉर्मेट में होता है।
6. एड्रेस रेजोल्युशन (Address Resolution Protocol)
IPv4: इसमें ARP (Address Resolution Protocol) का उपयोग होता है।
IPv6: इसमें NDP (Neighbor Discovery Protocol) का उपयोग होता है, जो ज्यादा प्रभावी और सुरक्षित है।
7. डेटा ट्रांसमिशन टाइप्स (Transmission Types)
IPv4: Broadcasting को सपोर्ट करता है।
IPv6: Multicasting और Anycasting को सपोर्ट करता है, जो ज्यादा efficient हैं।
8. IP Configuration
IPv4: मैनुअल सेटिंग या DHCP (Dynamic Host Configuration Protocol) की जरूरत होती है।
IPv6: Auto-configuration की सुविधा होती है, जिससे IP एड्रेस अपने-आप असाइन हो जाता है।
9. सिक्योरिटी (Security)
IPv4: IPsec सुरक्षा विकल्प के रूप में होता है।
IPv6: IPsec डिफ़ॉल्ट रूप से इनबिल्ट होता है, जिससे डेटा ट्रांसमिशन अधिक सुरक्षित होता है।
10. परफॉर्मेंस और स्पीड (Performance and Speed)
IPv4: स्पीड ठीक है लेकिन नेटवर्क लोड बढ़ने पर धीमा हो सकता है।
IPv6: ज्यादा तेज़ और efficient है क्योंकि इसमें header processing सरल होती है।
11. वर्तमान उपयोग (Current Usage)
IPv4: आज भी सबसे ज़्यादा इस्तेमाल में है।
IPv6: इसका उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, खासकर नई टेक्नोलॉजी में।
12. हेडर संरचना (Header Structure)
IPv4: Header जटिल और बड़ा होता है।
IPv6: Header सरल और छोटा होता है, जिससे स्पीड बढ़ती है।
13. पैकेट फ्रैगमेंटेशन (Packet Fragmentation)
IPv4: Routers भी पैकेट को तोड़ सकते हैं।
IPv6: केवल Sender डिवाइस ही पैकेट को फ्रैगमेंट करता है।
14. मोबाइल सपोर्ट (Mobile Compatibility)
IPv4: सीमित मोबाइल सपोर्ट प्रदान करता है।
IPv6: Mobile IP को बेहतर सपोर्ट करता है, जिससे मोबाइल इंटरनेट ज्यादा तेज़ और स्थिर होता है।
15. NAT की आवश्यकता (Need for NAT)
IPv4: IP एड्रेस की कमी के कारण NAT (Network Address Translation) का उपयोग करना पड़ता है।
IPv6: NAT की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि एड्रेस भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं।
16. प्राइवेट एड्रेसिंग (Private Addressing)
IPv4: कुछ IP रेंज को प्राइवेट नेटवर्क के लिए रिज़र्व किया गया है।
IPv6: इसमें Unique Local Address (ULA) होते हैं जो निजी नेटवर्क के लिए होते हैं।
17. QoS सपोर्ट (Quality of Service)
IPv4: QoS को पूरी तरह सपोर्ट नहीं करता।
IPv6: बेहतर QoS सपोर्ट करता है जिससे real-time services जैसे वीडियो कॉलिंग, स्ट्रीमिंग आदि में performance अच्छी रहती है।
18. यूनिक एड्रेस एलोकेशन (Unique Address Allocation)
IPv4: सीमित एड्रेस के कारण सभी डिवाइसेज को यूनिक एड्रेस मिलना मुश्किल होता है।
IPv6: हर डिवाइस को एक यूनिक और पब्लिक IP मिल सकता है।
19. भविष्य की तैयारी (Future Readiness)
IPv4: धीरे-धीरे phase out किया जा रहा है।
IPv6: इसे “Internet का भविष्य” माना जाता है क्योंकि यह नई तकनीकों के लिए उपयुक्त है।
IPv4 के फायदे (Advantages of IPv4):
1. स्थापित तकनीक (Well-Established):
IPv4 दशकों से इंटरनेट में इस्तेमाल हो रहा है, इसलिए यह पूरी दुनिया में widely supported है।
2. इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध (Existing Infrastructure):
इसका नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर पहले से तैयार है, जिससे इसे लागू करना आसान होता है।
3. Compatibility:
सभी प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम, डिवाइसेज़ और एप्लिकेशन IPv4 को सपोर्ट करते हैं।
4. सरलता (Simplicity):
IPv4 एड्रेस की लंबाई (32-बिट) छोटी होती है, जिससे इसे याद रखना आसान होता है।
5. NAT सपोर्ट:
NAT (Network Address Translation) की वजह से सीमित IPs से भी अधिक डिवाइसेज़ इंटरनेट से जुड़ सकते हैं।
IPv4 के नुकसान (Disadvantages of IPv4):
1. IP एड्रेस की कमी (Address Exhaustion):
सिर्फ 4.3 अरब एड्रेस होने के कारण अब नए डिवाइसेज़ को यूनिक IP देना मुश्किल हो गया है।
2. सिक्योरिटी का अभाव (Lack of Built-in Security):
IPv4 में IPsec डिफ़ॉल्ट रूप से नहीं होता, जिससे डेटा सुरक्षित नहीं रहता।
3. Network Complexity:
NAT और DHCP जैसी तकनीकों की वजह से नेटवर्क मैनेजमेंट जटिल हो जाता है।
4. Slow Performance:
NAT के कारण डेटा पैकेट का ट्रांसफर धीमा हो सकता है।
5. Broadcasting:
IPv4 में Broadcasting अधिक नेटवर्क ट्रैफिक पैदा करता है, जो performance को घटा सकता है।
IPv6 के फायदे (Advantages of IPv6):
1. असीम IP एड्रेस (Unlimited IPs):
128-बिट की वजह से IPv6 खरबों डिवाइसेज़ को यूनिक IP दे सकता है।
2. Auto-configuration:
इसमें डिवाइस खुद-ब-खुद IP एड्रेस प्राप्त कर सकता है, DHCP की जरूरत नहीं होती।
3. In-built Security:
IPv6 में IPsec पहले से मौजूद होता है, जिससे डेटा ट्रांसमिशन ज्यादा सुरक्षित रहता है।
4. बेहतर स्पीड (Improved Speed):
Header छोटा और सिंपल होने के कारण डेटा प्रोसेसिंग तेजी से होती है।
5. Multicasting और Anycasting:
IPv6 में Multicast और Anycast Communication सपोर्ट होता है, जिससे नेटवर्क efficiency बढ़ती है।
6. No NAT Required:
हर डिवाइस को पब्लिक IP मिल सकता है, जिससे NAT की जरूरत नहीं पड़ती।
7. बेहतर Mobile Support:
IPv6 मोबाइल नेटवर्किंग के लिए ज्यादा उपयुक्त है।
8. Future-Ready:
यह IoT, 5G और नई टेक्नोलॉजी के लिए डिज़ाइन किया गया है।
IPv6 ( नुकसान )
1. Migration Challenge
2. Incompatibility
3. Training और Skill Gap
4. Implementation Cost
5. Complex Addressing
निष्कर्ष: IPv4 vs IPv6 – कौन बेहतर है?
IPv4 अभी भी ज्यादा उपयोग में है, लेकिन यह पुराना और सीमित है। वहीं IPv6 भविष्य के लिए जरूरी है – ज्यादा IP एड्रेस, बेहतर सिक्योरिटी और तेज परफॉर्मेंस के साथ। आने वाले समय में पूरी दुनिया IPv6 की ओर बढ़ेगी।