Layered Technology
Software engineering में यह एक technique होती है जिसकी मदद से सॉफ्टवेयर को layer by layer move करने का कार्य किया जाता है, अर्थात एक सॉफ्टवेयर को बनाने के लिए अलग-अलग layers से गुजरना पड़ता है।
प्रत्येक layer का अपना एक विशिष्ट कार्य होता है, अर्थात सभी layers का कार्य एक दूसरे से अलग होते हैं। प्रत्येक layer अपने नीचे और ऊपर की layer से जुड़ी हुई होती है।
Layered Technology में चार प्रकार के लेयर होते है:
- A quality focus
- Process
- Method
- Tools
Tools
यह layered Technology की प्रथम लेयर होती है। इस लेयर में tools का उपयोग किया जाता है जैसे automated एवं semi-automated आदि।
इस tools में प्राप्त जानकारियों को दूसरे tools में उपयोग किया जा सकता है। इस लेयर में सॉफ्टवेयर तैयार करते समय self operating system प्रदान किया जाता है।
Method
यह layered Technology का दूसरा लेयर (स्तर) होता है। जिसमें सॉफ्टवेयर तैयार करने के अलग-अलग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
इसमें तकनीकी प्रश्न उपलब्ध कराता है यानी सॉफ्टवेयर को किस लिए बनाया जाएगा, इसकी क्या महत्व है? इस लेयर में प्रोग्राम का निर्माण, कम्युनिकेशन की विश्लेषण (Analysis), Design modeling तथा support को शामिल किया जाता है।
Process
यह layered Technology की तीसरी लेयर है। यह लेयर software engineering की आधार (base) होती है अर्थात यह लेयर सभी लेयर को जोड़कर रखती है।
इसमें सभी processes शामिल होती हैं जो सॉफ्टवेयर के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। यह सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के पूरा होने तक मदद करती है।
इस लेयर के आसपास अन्य लेयर का निर्माण होता है जैसे, communication planning, modelling, development आदि। यह एक framework की तरह होती है।
A Quility Focus
इस लेयर में सॉफ्टवेयर की कमियां, सुधार तथा गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता है। सॉफ्टवेयर को उपयोग करने के पूर्व इसमें कई तरह के सुधार किए जाते हैं। यह सारी प्रक्रिया इसी लेयर में की जाती है।
सॉफ्टवेयर के authorized तथा यूजर पर विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि यूजर authorized को access न कर पाए।
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