प्रोकैरियोटिक कोशिका – Prokaryotic Cell in Hindi
हम ‘prokaryotic cell in hindi’ अर्थात प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के बारे में विस्तार से समझेंगे।
परिचय | Introduction
प्रोकैरियोटिक कोशिका एक ऐसी सरल कोशिका है जिसमें स्पष्ट केन्द्रक (Nucleus) और अन्य झिल्लीबद्ध अंगाणु नहीं होते। पादप और जंतु कोशिकाओं की तुलना में प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ आकार में छोटी और सरल होती हैं।
इनमें जीवाणु (Bacteria) और आर्किबैक्टीरिया (Archaea) शामिल होते हैं। इनका महत्त्व इसलिए भी है कि ये पृथ्वी पर सबसे पहले विकसित जीवों में से एक हैं और जीवन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।
प्रोकैरियोट्स पृथ्वी पर सबसे पहले उत्पन्न हुए जीव थे (लगभग 3.5 अरब साल पहले)। ये अत्यधिक अनुकूलनीय होते हैं और अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं। मानव शरीर में भी लाखों प्रोकैरियोट्स (माइक्रोबायोम) उपस्थित होते हैं।
परिभाषा | Definition
प्रोकैरियोटिक कोशिका से तात्पर्य एकल-कोशिकीय (Single-celled) जीव से है जिसकी कोशिका में केन्द्रक और अन्य झिल्लीबद्ध अंग (जैसे माइटोकॉन्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट आदि) नहीं होते।
प्रोकैरियोटिक शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘पहले का केंद्रक’, यूनानी शब्द pro (पहले) और karyon (केंद्रक) से लिया गया है।
इन कोशिकाओं में आनुवंशिक पदार्थ (DNA) एक खुला क्षेत्र, जिसे न्यूक्लियोइड कहते हैं, में होता है और यह आमतौर पर एक वृत्ताकार गुणसूत्र (क्रोमोसोम) के रूप में होता है।
कई प्रोकैरियोट्स में इसके अतिरिक्त छोटे वृत्ताकार DNA अणु भी होते हैं जिन्हें प्लास्मिड कहा जाता है, जो विशिष्ट परिस्थितियों में लाभकारी विशेषताएँ प्रदान करते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के सामान्य लक्षण निम्न हैं:

- कोशिका केन्द्रक का अभाव: प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में कोई स्पष्ट नाभिक नहीं होता। इनमें आनुवंशिक पदार्थ कोशिका के द्रव्य (साइटोप्लाज्म) में बिखरा रहता है और ऊतकीय झिल्ली नहीं होती।
- झिल्लीबद्ध अंगाणुओं की अनुपस्थिति: इनमें माइटोकॉन्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट, एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम, गॉल्जी उपकरण आदि जैसे झिल्लीबद्ध अंग नहीं पाए जाते।
- सरल संरचना एवं आकार: प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ अपेक्षाकृत छोटी (लगभग 1–10 माइक्रोमीटर) और सरल होती हैं। राइबोसोम 70S प्रकार के होते हैं जो प्रोटीन संश्लेषण के लिए ज़िम्मेदार हैं।
- आनुवंशिकी: प्रमुख जीनोम एक वृत्ताकार गुणसूत्र के रूप में होता है और कभी-कभी अतिरिक्त प्लास्मिड भी होते हैं। ये वृद्धि के लिए द्विभाजन (बायनरी फिशन) का प्रयोग करते हैं।
इन लक्षणों की वजह से प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं की संरचना ईयूकेरियोटिक (यूकेरियोटिक) कोशिकाओं से सरल और भिन्न होती है, जिसके बारे में बाद में चर्चा करेंगे।
इतिहास और विकास | History and Evolution
वैज्ञानिक बताते हैं कि प्रोकैरियोटिक जीव पृथ्वी पर लगभग 3.5 अरब वर्ष पहले से मौजूद हैं। उन्होंने उस समय की कठोर परिस्थितियों में भी जीवन की नींव तैयार की और बायोगैओकेमिकल चक्रों को संचालित करने में अहम भूमिका निभाई।
शुरुआती वर्गीकरण प्रणालियों में सभी प्रोकैरियोटिक जीवों को एक ही राजा Monera में रखा गया था, लेकिन बाद में 1970-80 के दशक में मॉलिक्यूलर विज्ञान द्वारा इन्हें दो प्रमुख समूहों में बाँटा गया: बैक्टीरिया और आर्किया।
1990 में कार्ल वोज़ (Carl Woese) ने तीन-डोमेन प्रणाली (Three-domain system) प्रस्तुत की, जिसमें जीवन को तीन डोमेन में बांटा गया—बैक्टीरिया, आर्किया, और यूकेरिया। इस प्रणाल ने साबित किया कि बैक्टीरिया और आर्किया एक-दूसरे से और यूकेरियोट्स से भी उतने ही भिन्न हैं जितना वे ईयूकेरियोट से हैं।
इतिहास में प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं को प्रोकैरियोट भी कहा गया है। सबसे पुराने जीवाश्मों में पाए गए जीव प्रोकैरियोटिक माने गए हैं।
पृथ्वी के बनने के लगभग एक अरब वर्ष बाद प्रोकैरियोटिक जीव मौजूद थे, जबकि यूकेरियोटिक जीवावशेष बहुत बाद में (लगभग 1.7 अरब वर्ष पहले) मिलते हैं। इसका मतलब है कि प्रोकैरियोट्स का उद्भव यूकेरियोट्स से पहले हुआ और जीवन के आरंभिक चरणों में इनका अहम योगदान रहा।
आधुनिक जीव विज्ञान में भी प्रोकैरियोटिक्स को माउनडलर लाइफ के रूप में देखा जाता है और इन्हें विविधता, अनुकूलन और विकास की समझ में महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के प्रकार | Types of Prokaryotic Cells
प्रोकैरियोटिक्स दो मुख्य डोमेनों में विभाजित हैं: बैक्टीरिया (Bacteria) और आर्किया (Archaea)। ये दोनों समूह अलग-अलग आनुवंशिक रेखाओं से विकसित हुए हैं।
बैक्टीरिया | Bacteria
बैक्टीरिया सबसे अधिक प्रचलित प्रोकैरियोटिक जीव हैं। ये हर जगह पाए जाते हैं: मिट्टी, पानी, पेड़ों पर, मानव शरीर में और बहुत विविधता प्रदर्शित करते हैं।
अधिकांश बैक्टीरिया में कोमल संरचना की कोशिका भित्ति होती है जो पेप्टिडोग्लाइकन (Peptidoglycan) नामक पदार्थ से बनी होती है। इनमें क्लोरोफिलयुक्त साइनोबैक्टीरिया जैसे फोटोसिंथेटिक समूह भी शामिल हैं जो प्रकाश संश्लेषण कर ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं।

कुछ बैक्टीरिया सहजीवी रूप से पौधों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं (उदा. Rhizobium), जबकि कुछ पाचन तंत्र में रहते हैं और विटामिन बनाते हैं। बहुत से बैक्टीरिया मानव, पशु और पादप रोगों के कारण भी होते हैं (जैसे टीबी, हैजा, प्लेग), लेकिन उनके फायदे कहीं अधिक हैं और जीवन चक्र में इनका योगदान अनिवार्य है।
आर्किया | Archaea
आर्किया भी एक अलग प्रोकैरियोटिक समूह हैं, जो संरचनात्मक रूप से बैक्टीरिया के सामान होते हुए भी आनुवंशिक और जैव रासायनिक दृष्टि से उनसे भिन्न हैं।
आर्कियाई कोशिकाओं की कोशिका भित्ति में पेप्टिडोग्लाइकन (Peptidoglycan) नहीं होता, बल्कि अलग प्रोटीन या पॉलिसैकराइड (Polysaccharides) होते हैं।
ये अक्सर अत्यंत परिस्तिथियों में पाये जाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ आर्किया अत्यधिक नमक (हैलोफाइल्स), उच्च तापमान (थर्मोफाइल्स), या अम्लीय क्षेत्रों में (थर्मोएसिडोफाइल्स) जीवित रह सकते हैं।

आर्कियाई जीवों के उदाहरण हैं मीथेनोजेन (ये मीथेन गैस बनाते हैं), हैलोफाइल (समुद्र के नमकीन पानी में), और सोर्फोबेक्टीरिया (गर्म अम्लीय झरनों में)। हालांकि आर्किया की व्यापक विविधता का अभी पूर्ण पता नहीं है, पर इनके जीनोम और जीवनप्रकार अध्ययन में लगातार नई जानकारियाँ मिल रही हैं।
संरचना और कार्य | Structure and Components
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं की संरचना अपेक्षाकृत सरल होती है। चित्र: प्रोकैरियोटिक कोशिका का सरलीकृत आरेख (Diagram of a typical prokaryotic cell) – इसमें दिखाए गए मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:
कोशिका झिल्ली (Cell Membrane): यह मुख्य झिल्ली फ़ॉस्फ़ोलिपिड दोहरी परत से बनी होती है जो कोशिका के भीतर की सामग्री को बाहरी पर्यावरण से अलग करती है।
कोशिका भित्ति (Cell Wall): अधिकांश बैक्टीरिया में पेप्टिडोग्लाइकन नामक पदार्थ से बनी कठोर कोशिका भित्ति होती है, जो कोशिका को आकार देती है और संरचनात्मक मजबूती प्रदान करती है। आर्कियाई भित्ति में भिन्न रासायनिक संरचना (जैसे आर्केयल लिपिड और प्रोटीन) पायी जाती है।
न्यूक्लियोइड (Nucleoid): प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में केन्द्रक झिल्ली नहीं होती, इसलिए DNA एक खुला क्षेत्र (न्यूक्लियोइड) में रहता है। यह आम तौर पर एक एकल वृत्ताकार गुणसूत्र के रूप में होता है।
प्लाज्मिड (Plasmid): कई प्रोकैरियोट्स में अतिरिक्त छोटे वृत्ताकार DNA अणु पाये जाते हैं, जिन्हें प्लाज़्मिड कहते हैं। ये मुख्य गुणसूत्र से स्वतंत्र होते हैं और विशेष परिस्थितियों में प्रतिजैविक प्रतिरोध या अन्य लाभकारी गुण दे सकते हैं।
राइबोसोम (Ribosome): कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) में 70S प्रकार के राइबोसोम मौजूद होते हैं, जो राइबोन्यूक्लिक अम्ल (mRNA) से प्रोटीन संश्लेषित करने का कार्य करते हैं।
अन्य संरचनाएँ: कुछ प्रोकैरियोट कोशिकाओं में गतिशीलता के लिए प्रोटीन संरचना वाले फ्लैगेला भी होते हैं। पिलि (पतली प्रोटीन थ्रेड) सतह से चिपकने या अनुवांशिक सामग्री के आदान-प्रदान के लिए होती हैं। कुछ जीवों में बाहरी परत के रूप में कैप्सूल भी होती है, जो कोशिका को प्रतिकूल स्थितियों से सुरक्षा देती है। (Prokaryotic Cell in Hindi)
प्रोकैरियोटिक्स की ये सभी संरचनाएँ बिना किसी जटिल अवयवमंडल (ऑर्गेनेल्स) के कार्य करती हैं। उदाहरण के लिए, ATP संश्लेषण और ऊर्जा उत्पादन की क्रियाएँ भी इन्हीं झिल्ली पर हो सकती हैं।
कोशिका विभाजन द्विभाजन (Binary Fission) द्वारा होता है, जिसमें गुणसूत्र की प्रतिकृति बनाकर दो नई कोशिकाएँ बनती हैं। इस प्रकार की सरल संरचना के कारण प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ तेजी से बढ़ सकती हैं और अनुकूलन कर सकती हैं।
प्रोकैरियोटिक और यूकेरियोटिक कोशिका में अंतर | Prokaryotic vs Eukaryotic Cells
निम्न तालिका में प्रोकैरियोटिक और यूकेरियोटिक कोशिकाओं के प्रमुख अंतर दिखाए गए हैं:
विशेषता (Feature) | प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic Cell) | यूकेरियोटिक कोशिका (Eukaryotic Cell) |
---|---|---|
आकार (Size) | छोटा (लगभग 1–10 माइक्रोमीटर) | बड़ा (लगभग 10–100 माइक्रोमीटर) |
कोशिका केन्द्रक (Nucleus) | नहीं (नाभिक झिल्लीबद्ध नहीं) | हाँ (परिवेशित केन्द्रक होता है) |
अंगाणु (Organelles) | झिल्लीबद्ध अंगाणु नहीं (माइटोकॉन्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट आदि नहीं) | अनेक झिल्लीबद्ध अंगाणु (माइटोकॉन्ड्रिया, एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम, आदि) होते हैं |
DNA का रूप (DNA Type) | एकल वृत्ताकार गुणसूत्र + प्लाज्मिड | कई रेखीय गुणसूत्र (क्रोमोसोम) होते हैं |
विभाजन (Division) | द्विभाजन (Binary fission) द्वारा अप्राकृतिक पुनरुत्पादन | मिटोसिस और मायोसिस द्वारा विभाजन होता है |
राइबोसोम (Ribosome) | 70S (छोटे) राइबोसोम होते हैं | 80S (बड़े) राइबोसोम होते हैं |
इन अंतरों से स्पष्ट होता है कि प्रोकैरियोटिक और यूकेरियोटिक कोशिकाएँ संरचनात्मक और कार्यात्मक रूप से काफी भिन्न हैं।
प्रोकैरियोट्स की सरल संरचना उनकी तीव्र वृद्धि दर और विविधतम पारिस्थितिकी तंत्रों में उनका प्रसार सुनिश्चित करती है। इसके विपरीत, यूकेरियोटिक कोशिकाओं में जटिल अवयव होने से इनकी कार्यक्षमता विशेषीकृत होती है (जैसे इंसानी कोशिकाओं में जटिल तंत्र)।
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के कार्य और उदाहरण | Functions and Examples of Prokaryotic Cells
प्रोकैरियोटिक्स के कई कार्य हैं जो जीवन और पर्यावरण की विविध प्रक्रियाओं में सहायक होते हैं:
नाइट्रोजन स्थिरीकरण: कुछ मिट्टी के बैक्टीरिया (जैसे Rhizobium) और साइनोबैक्टीरिया वायु में मौजूद नाइट्रोजन गैस (N₂) को रासायनिक यौगिकों (जैसे अमोनिया) में परिवर्तित करते हैं। यह प्रक्रिया पौधों के लिए पौष्टिक नाइट्रोजन उपलब्ध कराती है और कृषि उत्पादन में मदद करती है।
खाद्य पदार्थ का किण्वन: दही, अचार, शराब, बीयर, रोटी आदि बनाने में प्रोकैरियोट्स की महत्वपूर्ण भूमिका है। उदाहरण स्वरूप, लैक्टोबेसिलस बैक्टीरिया दही में प्रोबायोटिक प्रभाव डालते हैं और सफेद शराब व अचार के किण्वन में सहायक होते हैं।
मानव और पशु स्वास्थ्य: मानव आंतों तथा त्वचा में सहजीवी बैक्टीरिया रहते हैं जो भोजन के पाचन में सहायता करते हैं, कुछ विटामिन (जैसे विटामिन K, B12) बनाते हैं और रोगजनकों से सुरक्षा करते हैं। उदाहरण के लिए, मानव आंत में सामान्य रूप से पाए जाने वाले ई. कोलाइ बैक्टीरिया विटामिन K उत्पादन करके स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हैं।
रोगजनक (Pathogens): कुछ बैक्टीरिया और आर्किया रोग का कारण भी बन सकते हैं। टायफाइड, हैजा, टीबी, दांत क्षय आदि बीमारियाँ विभिन्न बैक्टीरिया से होती हैं। हालांकि, ऐसे रोगजनक केवल सूक्ष्मजीवों का एक छोटा हिस्सा हैं।
मृत पदार्थ अपघटन: मृत पौधों और जानवरों के अवशेषों को प्रोकैरियोट्स अपघटित करके पुनर्जीवित पोषक तत्वों को वातावरण में लौटाते हैं। यह जैविक चक्र (कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र) के लिए आवश्यक है।
उदाहरण
- साइनोबैक्टीरिया: इन हरे-नीले जीवाणुओं में क्लोरोफिल होता है और ये प्रकाश संश्लेषण कर ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार प्रोकैरियोटिक्स ने प्राचीन वातावरण को ऑक्सीजन युक्त बनाया।
- लैक्टोबेसिलस एवं बिफीडोबैक्टीरिया: ये दूध को दही में किण्वित करते हैं और मानव पाचन तंत्र में सहजीवी रहते हैं।
- एज़ोटोबैक्टर: मिट्टी के बैक्टीरिया हैं जो स्वतंत्र रूप से नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं, जिससे पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
- उत्तम हिमालयन नौका रोगाणु (Methanogens): आर्किया की एक श्रेणी, ये सूक्ष्मजीव मीथेन गैस उत्पादित करते हैं और गले के सबसे कट्टर परिस्तिथियों (जैसे गोबर गैस संयंत्र) में पाए जाते हैं।
जैव प्रौद्योगिकी, चिकित्सा एवं पर्यावरण में भूमिका | Role in Biotechnology, Medicine, and Environment
प्रोकैरियोटिक्स का अनुप्रयोग कई क्षेत्रों में होता है:
जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology): आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किए गए बैक्टीरिया इंसुलिन, मानव वृद्धि हार्मोन, वैकसीन, एंजाइम आदि दवाएँ और उत्पाद बनाने में प्रयोग होते हैं। प्रोकैरियोटिक सेल फैक्ट्री की तरह बड़े पैमाने पर रासायनिक पदार्थ बनाने में सक्षम हैं। इसके अलावा, सिरोमणुक पुरानी किण्वित खाद्य प्रक्रियाएँ भी प्रोकैरियोट पर निर्भर करती हैं।
दवा निर्माण (Medicine): Streptomyces जैसे जीवाणु समूह से अधिकांश एंटीबायोटिक्स (जैसे पेनिसिलिन, सेरोलॉमाइसिन) प्राप्त होते हैं। शोध में प्रोबायोटिक्स का उपयोग रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और उन्नत चिकित्सा उपचारों (जैसे प्रोबायोटिक दवा) में किया जा रहा है।
जैविक सफाई (Environment/Bioremediation): तेल रिसाव और औद्योगिक अपशिष्टों (जैसे की भारी धातुएँ, कीटनाशक) को साफ करने में प्रोकैरियोट्स का उपयोग होता है। विशेष रूप से, सल्फोलैक्सोबैक्टीरिया जैसे बैक्टीरिया तेल के हाइड्रोकार्बन खाने और उसे कार्बन डाइऑक्साइड में बदलने में सक्षम हैं। इस प्रकार ये प्राकृतिक संसाधनों को दूषित करने वाले प्रदूषकों को तोड़कर पर्यावरण को साफ रखने में मदद करते हैं। (Prokaryotic Cell in Hindi)
नाइट्रोजन चक्र व कार्बन चक्र: नाइट्रोजन का पृथ्वी पर मुख्य स्रोत प्रोकैरियोटिक स्थिरीकरण प्रक्रिया ही है। इसके अलावा, मिट्टी में रहने वाले बैक्टीरिया कार्बनिक पदार्थों को अपघटित करके मिट्टी की उर्वरता बनाए रखते हैं।
इन क्षेत्रों में प्रोकैरियोटिक्स की भूमिका ने हमारे जीवन की गुणवत्त सुधारने और अनुसंधान में नए मार्ग खोलने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। जीवन विज्ञान और उद्योग दोनों में प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं की समझ लगातार बढ़ रही है, जिससे नई औषधियाँ, वैकसीन तथा पर्यावरणीय समाधान प्राप्त हो रहे हैं। ()
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions
प्रश्न: प्रोकैरियोटिक कोशिका क्या है?
उत्तर: प्रोकैरियोटिक कोशिका एक सरल, एककोशिकीय कोशिका है जिसमें केन्द्रक (न्यूक्लियस) और अन्य झिल्लीबद्ध अंगाणु नहीं होते। इसका आनुवंशिक पदार्थ कोशिका द्रव्य में खुला रहता है।
प्रश्न: बैक्टीरिया और आर्किया में क्या अंतर है?
उत्तर: दोनों ही प्रोकैरियोटिक हैं, लेकिन आर्किया की कोशिका रसायनिक रूप से बैक्टीरिया से भिन्न होती है। आर्किया में पेप्टिडोग्लाइकन कोशिका भित्ति नहीं होती और ये अक्सर अतिचारी स्थितियों (जैसे गर्म झरने, उच्च नमक) में पाए जाते हैं। बैक्टीरिया अधिक सामान्य और विविध होते हैं, जिनमें अधिकांश रोगजनक और सहजीवी जीव शामिल हैं।
प्रश्न: प्रोकैरियोटिक कोशिका में केन्द्रक क्यों नहीं होता?
उत्तर: प्रोकैरियोटिक्स की विकासात्मक पंक्ति में केंद्रक झिल्ली का विकास नहीं हुआ। इनके डीएनए के चारों ओर कोई झिल्लीबद्ध आवरण नहीं होता। इसे सामान्यतया न्यूक्लियोइड क्षेत्र कहा जाता है, जहां डीएनए खुला होता है।
प्रश्न: प्रोकैरियोटिक कोशिका कितनी छोटी होती है?
उत्तर: सामान्यतः प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ 1 से 10 माइक्रोमीटर के बीच होती हैं। दुनिया की सबसे छोटी ज्ञात प्रोकैरियोटिक कोशिका Mycoplasma genitalium लगभग 0.2 माइक्रोमीटर व्यास की होती है। बहुत बड़े प्रोकैरियोट भी पाए गए हैं (जैसे Thiomargarita namibiensis लगभग 750 माइक्रोमीटर व्यास की)।
प्रश्न: क्या सभी बैक्टीरिया हानिकारक होते हैं?
उत्तर: नहीं, अधिकांश बैक्टीरिया हानिकारक नहीं होते। वास्तव में हमारे जीवन के लिए सहजीवी बैक्टीरिया जैसे आंतों के मित्राणु (gut flora) और मिट्टी के लाभदायक जीव बहुत ज़रूरी हैं। केवल कुछ ही बैक्टीरिया रोगजनक होते हैं।
प्रश्न: प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं का जीवन में क्या महत्त्व है?
उत्तर: प्रोकैरियोट्स जीवन चक्रों के अभिन्न अंग हैं। वे पोषक चक्रों को बनाए रखते हैं, खाना पकाने, दवाई बनाने और पर्यावरण की सफाई में सहायक हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना मुश्किल है।