Requirements Engineering in Hindi
Software बनाने से पूर्व उसकी आवश्यकताओं को इकठ्ठा करना और client के आवश्यकताओं का विश्लेषण तथा उनका documentation तैयार करना Requirement Engineering कहलाता है।
Requirement engineer सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट का वह पहला और सबसे महत्वपूर्ण भाग है, जिसमें users की ज़रूरतों को समझकर उन्हें सॉफ़्टवेयर के लिए स्पष्ट निर्देशों में बदला जाता है। software बनाने से पूर्व उसकी Requirement को एकत्रित करना आवश्यक होता है।
Requirement engineer का कार्य software engineer की मदद करना होता है क्योकि किसी software को तभी पूर्ण माना जायेगा जब उसके ग्राहक के द्वारा उसके सभी प्रकार से सही होने हो। इसलिए हम कह सकते हैं कि software engineering का उद्देश्य एक अच्छे level के system तैयार करना होता है।
Requirement engineer के द्वारा निम्न तत्व है जिस पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है:
- ग्राहक क्या चाहता है इसे समझने का प्रयास करना।
- आवश्यकताओं का विश्लेषण करना।
- प्रत्येक ग्राहक तक पहुंच बनाना।
- आपसी बातचीत के लिए रास्ता बनाना।
- हल को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना।
- Specification का निर्धारण करना।
Requirements Engineering tasks:
Requirements Engineering (आवश्यकता अभियांत्रिकी) सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें सॉफ्टवेयर सिस्टम के लिए आवश्यकताओं को समझना, विश्लेषण करना, दस्तावेज़ीकरण करना और उन्हें प्रबंधित करना शामिल है। Requirements Engineering के मुख्य कार्य (tasks) निम्नलिखित हैं:
1. Requirements Elicitation
- Stake Holders (जैसे ग्राहक, उपयोगकर्ता, डेवलपर्स) से बातचीत करके requirements को समझना।
- Interviews, Surveys, Workshops, Brainstorming, और Observation जैसे तरीकों का उपयोग करना।
- सिस्टम की जरूरतों और expectations को स्पष्ट करना।
2. Requirements Analysis
- एकत्रित Requirements को समझना और उनका विश्लेषण करना।
- आवश्यकताओं के बीच संघर्ष (conflicts) को solve करना।
- आवश्यकताओं को प्राथमिकता (priority) के आधार पर व्यवस्थित करना।
- सिस्टम की सीमाओं और संभावित समस्याओं की पहचान करना।
3. Requirements Specification
- आवश्यकताओं को स्पष्ट और संरचित तरीके से documentation करना।
- Functional Requirements (सिस्टम क्या करेगा) और Non-Functional Requirements (सिस्टम कैसे काम करेगा) को अलग-अलग लिखना।
- Use Cases, User Stories, और अन्य मॉडल्स का उपयोग करना।
4. Requirements Validation and Verification
- यह सुनिश्चित करना कि requirements सही और पूरी हैं।
- Stakeholders के साथ requirements की Review (समीक्षा) करना।
- यह जांचना कि requirements व्यावहारिक हैं और सिस्टम के लक्ष्यों को पूरा करती हैं।
5. Requirements Management
- Requirements में होने वाले बदलावों को ट्रैक करना।
- Requirements के संस्करण (versions) को प्रबंधित करना।
- परियोजना के दौरान requirements को अपडेट और बनाए रखना।
6. Requirements Documentation
- सभी requirements को एक Structured और स्पष्ट दस्तावेज़ में लिखना।
- Software Requirements Specification (SRS) दस्तावेज़ तैयार करना।
7. Change Management
- Requirements में होने वाले बदलावों को manage करना।
- Change Request Process को फॉलो करना।
8. Requirements Review
- Stakeholders के साथ requirements की समीक्षा करना।
- Feedback लेना और requirements में सुधार करना।
ये सभी कार्य software development लाइफ साइकिल (SDLC) के शुरुआती चरणों में किए जाते हैं ताकि सही और उपयोगी Software Systems बनाया जा सके।
Advantages of Requirements Engineering Process
- सॉफ़्टवेयर बनाने से पहले, यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि सभी stakeholders (जैसे users, clients) की ज़रूरतें और उम्मीदें पूरी हों।
- Development शुरू करने से पहले ही errors, conflicts, या missing requirements को ढूंढ लिया जाता है। इससे बाद में समय और पैसा बचता है।
- सही requirements पता होने से सॉफ़्टवेयर कम लागत में और तेज़ी से बनता है
- Developers और stakeholders के बीच बातचीत बेहतर होती है। सभी एक ही पेज पर होते हैं।
- Requirements को साफ़-साफ़ लिखा जाता है, जिससे confusion और गलतियाँ कम होती हैं।
- अलग-अलग stakeholders की अलग demands होती हैं। RE Process इन conflicts को शुरुआत में ही सुलझा देता है।
- सॉफ़्टवेयर सही समय पर, बजट के अंदर और अच्छी quality के साथ deliver होता है।
Disadvantages of Requirements Engineering Process
- अगर process अच्छे से manage न हो, तो requirements इकट्ठा करने में बहुत समय और पैसा लग सकता है।
- सभी stakeholders की ज़रूरतें समझना और उन्हें balance करना मुश्किल होता है (खासकर जब priorities अलग हों)।
- कई बार requirements confuse होती हैं या पूरी नहीं होतीं, जिससे development में दिक्कत आती है।
- अगर बीच में requirements बदलती हैं, तो project delay हो सकता है और cost बढ़ सकता है।
- जटिल projects में stakeholders के बीच झगड़े हो सकते हैं, जिन्हें सुलझाना मुश्किल होता है।
- कुछ stakeholders (जैसे non-tech users) अपनी ज़रूरतें सही से बता नहीं पाते, जिससे गड़बड़ी होती है।
- Requirement engineering Process को flexible और adaptable रखो! Project के goals के साथ align करो, ताकि changes को आसानी से manage किया जा सके।
Example:
अगर client बीच में कहता है, “हमें login feature के साथ OTP भी चाहिए!”
तो flexible process होने पर developers बिना ज़्यादा delay के इसे add कर सकते हैं।
Requirements Engineering एक “रोडमैप” की तरह है। अगर इसे सही से बनाओ, तो सॉफ़्टवेयर सही दिशा में चलेगा। लेकिन अगर इसमें जल्दबाज़ी की, तो गड्ढों (errors) में गिर सकता है!
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