Software Development Life Cycle in hindi
SDLC एक प्रक्रिया है जिसमें Software बनाने के लिए step by step folllow किया जाता है। यह Software को सही तरीके से, कम समय और कम खर्च में बनाने में मदद करता है।
SDLC क्या है? SDLC का मतलब है सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट लाइफ साइकिल (Software Development Life Cycle). SDLC के अलग-अलग मॉडल होते हैं जैसे Waterfall, Agile, Iterative।
What is software
Software कंप्यूटर हार्डवेयर पर चलने वाले प्रोग्राम्स और डेटा का समूह होता है। यह कंप्यूटर को विशिष्ट कार्य करने के लिए निर्देश देता है और उपयोगकर्ताओं को विभिन्न कार्यों को करने में मदद करता है।
Software development
सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट (Software Development) सॉफ्टवेयर बनाने की प्रक्रिया को कहते हैं।
Life cycle
“लाइफ साइकल” (Life Cycle) का मतलब है “जीवन का पूरा चक्र” या “किसी चीज़ की उम्र के सभी चरण”
Software Development Life Cycle सॉफ्टवेयर बनाने का एक पूरा प्रोसेस (process) है, जिसमें सॉफ्टवेयर को प्लान (plan) करने से लेकर रिलीज़ (release) करने तक के सभी स्टेप्स (steps) शामिल होते हैं।
प्रारंभ से लेकर अंत तक में सॉफ्टवेयर के कितने चरण होते हैं, सॉफ्टवेयर को कैसे बनाया जाता है, स्टेप बाय स्टेप वह पूरी तरह से सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट लाइफ साइकिल में आता है।
सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट लाइफ साइकिल (SDLC) एक स्ट्रक्चर्ड प्रक्रिया है जिसका उपयोग अच्छी quality का सॉफ्टवेयर डिज़ाइन, डेवलप और टेस्ट करने के लिए किया जाता है। यह सॉफ्टवेयर बनाने के पूरे प्रोसेस को स्टेप-बाय-स्टेप परिभाषित करता है। SDLC का मुख्य उद्देश्य high quality वाला, आसानी से मेंटेन किया जा सकने वाला सॉफ्टवेयर बनाना है जो यूजर की ज़रूरतों को पूरा करे।
इसे ऐसे समझें:
जैसे एक घर बनाने के लिए पहले प्लान बनाया जाता है, फिर नींव (foundation) डाली जाती है, फिर दीवारें (walls) बनती हैं, और आखिर में घर तैयार होता है।
ठीक वैसे ही, सॉफ्टवेयर बनाने के लिए भी कुछ स्टेप्स (steps) फॉलो किए जाते हैं।

SDLC के स्टेप्स (Steps of SDLC):
SDLC में मुख्य रूप से 6 स्टेप्स होते हैं। उदाहरणों के साथ समझते हैं:
1. Planning:
इस phase को अन्य नाम से भी जाना जाता है (Requirement Collection)(Planning and Requirement Analysis)
यह SDLC का पहला और सबसे जरूरी चरण है। इसमें सॉफ्टवेयर बनाने से पहले दो मुख्य काम होते हैं
यह SDLC (सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट लाइफ साइकिल) का सबसे पहला और महत्वपूर्ण चरण है, जिसमें टीम के अनुभवी सदस्य ग्राहक, सेल्स टीम, मार्केट रिसर्च, और डोमेन एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर यह पता लगाते हैं कि “सॉफ़्टवेयर में क्या-क्या चाहिए?”। इसके बाद, इन जानकारियों का इस्तेमाल प्रोजेक्ट की योजना बनाने और उसे व्यवहारिक (Feasible) बनाने के लिए किया जाता है।
सबसे पहले यह तय किया जाता है कि सॉफ्टवेयर क्यों बनाया जा रहा है। Requirement Collection का मतलबसॉफ्टवेयर की जरूरतें (needs) समझना इसमें ग्राहक की जरूरतों को डिटेल में समझा जाता है।
जरूरतों का विश्लेषण (Requirement Analysis):
- ग्राहक को क्या चाहिए ?
- बजट कितना है ?
- टीम कैसी होगी ?
- टाइमलाइन क्या है ?
उदाहरण:
मान लीजिए आप एक ऐप (App) बनाना चाहते हैं जिसमें लोग अपने दोस्तों को मैसेज (message) भेज सकें।
इस स्टेप में यह पता लगाया जाएगा कि ऐप में क्या-क्या फीचर्स (features) होने चाहिए, जैसे: मैसेज भेजना, फोटो शेयर करना, वीडियो कॉल (video call) करना आदि।
2. Design:
सॉफ्टवेयर का ब्लूप्रिंट (blueprint) तैयार करना।
जब SRS (सॉफ्टवेयर रिक्वायरमेंट्स) में सभी जरूरतें लिख दी जाती हैं, तब डेवलपर्स सॉफ्टवेयर का डिज़ाइन तैयार करते हैं।
यह SDLC का वह चरण है जहाँ सिस्टम की प्लानिंग की जाती है कि वह “भीतर से कैसे काम करेगा” और “बाहर से यूजर्स को कैसा दिखेगा
- कई डिज़ाइन बनाना:
- डिज़ाइन टीम सॉफ्टवेयर के लिए अलग-अलग नक्शे (Designs) बनाती है।
- हर नक्शे में यह तय होता है: सॉफ्टवेयर कैसे काम करेगा? टेक्नोलॉजी क्या इस्तेमाल होगी?
- डेटा कहाँ स्टोर होगा?
- इसमें हर डिज़ाइन के फायदे-नुकसान भी बताए जाते हैं।
- सही डिज़ाइन चुनना:
- -मार्केट एक्सपर्ट्स, स्टेकहोल्डर्स (जैसे ग्राहक, मैनेजर) इस डिज़ाइन को चेक करते हैं
- कौन सा डिज़ाइन
- कम खर्चीला, जल्दी बन सकता है, और यूजर की जरूरत पूरी करता है।
इन सब बातों को जोड़कर सबसे बेस्ट डिज़ाइन चुन लिया जाता है।
3. Coding:
Coding का मतलब है, सॉफ्टवेयर को code (programming) लिखकर बनाना। इसे डेवलपमेंट फेज के नाम से भी जाना जाता है। यह वह स्टेप है जहाँ सॉफ्टवेयर की बिल्डिंग (निर्माण) शुरू होती है और डेवलपर्स डिज़ाइन के हिसाब से कोड लिखते हैं।
जैसे अगर डिज़ाइन में “Login” बटन बनाना है, तो उसके लिए प्रोग्रामिंग भाषा (जैसे Python, Java) में कोड लिखा जाता है।
उदाहरण: programmer ऐप के लिए कोड लिखता है, जैसे:
- मैसेज भेजने का कोड।
- फोटो शेयर करने का कोड।
4. Testing:
इसमें सॉफ्टवेयर को चेक (check) किया जाता है कि वह ठीक से काम कर रहा है या नहीं। testing (सॉफ्टवेयर की जाँच) जब सॉफ्टवेयर बन जाता है, तो यह सुनिश्चित करने के लिए testing की जाती है कि वह बिना गड़बड़ी के चले।
Developers सॉफ्टवेयर को अलग-अलग तरीकों से चलाते हैं और देखते हैं कि कहीं कोई गलती (बग) तो नहीं है। प्रत्येक error को सही किया जाता है और फिर से test किया जाता है।
उदाहरण: ऐप को test करना, जैसे:
- क्या मैसेज भेजने का फीचर (feature) ठीक से काम कर रहा है?
- क्या ऐप क्रैश (crash) तो नहीं हो रहा?
5. Deployment:
सॉफ्टवेयर को यूजर्स (users) के लिए रिलीज़ (release) करना। डिप्लॉयमेंट (सॉफ्टवेयर लॉन्च करना) जब सॉफ्टवेयर पूरी तरह test हो जाता है, तो उसे यूजर्स के पास भेजा जाता है।
थोड़ा-थोड़ा करके लॉन्च: पहले सॉफ्टवेयर को कुछ यूजर्स (जैसे किसी एक शहर या कंपनी) को दिया जाता है।
उदाहरण: ऐप को Google Play Store या App Store पर डालना, ताकि लोग इसे डाउनलोड (download) कर सकें।
6. Maintenance:
सॉफ्टवेयर को अपडेट (update) और ठीक (fix) करना। यह SDLC का अंतिम और लगातार चलने वाला Step है। जब सॉफ्टवेयर यूजर्स के पास पहुँच जाता है, तो उसमें समय-समय पर maintene और updates किए जाते हैं।
उदाहरण: app में नए फीचर्स (features) जोड़ना या उसमें आई गलतियों (bugs) को सुधारना।