Software Engineering Practices in Hindi

Software Engineering Practices in Hindi

सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के दौरान उपयोग किए जाने वाले तरीके और नियम हैं, जो सॉफ्टवेयर को बेहतर, विश्वसनीय और प्रभावी बनाने में मदद करते हैं। इन Practices का उद्देश्य सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट से जुड़ी समस्याओं को हल करना है।

सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग Practice (Software Engineering Practice) का मतलब है सॉफ्टवेयर सिस्टम को डेवलप, मेंटेन और मैनेज करने के लिए स्थापित सिद्धांत, मेथडोलॉजी, प्रक्रियाओं और बेस्ट Practices का उपयोग करना। यह सॉफ्टवेयर को बेहतर, विश्वसनीय और प्रभावी बनाने के लिए एक व्यवस्थित तरीका है।

Software Engineering Practices in hindi

What is Software Engineering Practices

सॉफ्टवेयर की प्लानिंग के समय मेथड, टूल, प्रिंसिपल और सिद्धांत तैयार करने को Software Engineering Practice कहा जाता है।

सॉफ्टवेयर बनाने, उसे मेंटेन करने और उसका प्रबंधन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले नियम और तरीके हैं। यह सुनिश्चित करती है कि सॉफ्टवेयर उच्च गुणवत्ता वाला हो और उपयोगकर्ताओं की जरूरतों को पूरा करे।

Software Engineering Practice जिसके माध्यम से सॉफ्टवेयर डेवलप करने के तरीके और बेहतर किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य हाई क्वालिटी का कंप्यूटर सॉफ्टवेयर बनाना होता है।

Software Engineering Practice का मतलब है सॉफ्टवेयर सिस्टम को डेवलप, मेंटेन और मैनेज करने के लिए स्थापित सिद्धांतों, मेथडोलॉजी, प्रक्रियाओं और बेस्ट Practices का उपयोग करना। यह सॉफ्टवेयर को बेहतर, विश्वसनीय और प्रभावी बनाने के लिए एक व्यवस्थित तरीका है।

Functions of Software Engineering Practice:

Requirements Engineering:

यह सॉफ्टवेयर बनाने से पहले ग्राहक और उपयोगकर्ताओं की जरूरतों को समझने की प्रक्रिया है। सही जरूरतों को समझने से सॉफ्टवेयर सही दिशा में बनता है और ग्राहक की अपेक्षाओं को पूरा करता है।

System Design:

सॉफ्टवेयर का एक ब्लूप्रिंट (खाका) तैयार करना, जिसमें यह तय किया जाता है कि सॉफ्टवेयर कैसे काम करेगा। डिजाइन से सॉफ्टवेयर की संरचना और काम करने का तरीका स्पष्ट होता है।

Software Development:

डिजाइन के आधार पर कोड लिखकर सॉफ्टवेयर बनाना। यह सॉफ्टवेयर का मुख्य हिस्सा है, जिसमें सॉफ्टवेयर को वास्तविक रूप दिया जाता है।

Software Testing and Quality Assurance:

  सॉफ्टवेयर को टेस्ट करके यह सुनिश्चित करना कि यह सही तरीके से काम कर रहा है और इसमें कोई गलती नहीं है। टेस्टिंग से सॉफ्टवेयर की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बढ़ती है।

Software Maintenance and Support:

सॉफ्टवेयर को जारी करने के बाद उसे अपडेट और मेंटेन करना ताकि यह लंबे समय तक अच्छी तरह काम कर सके। मेंटेनेंस से सॉफ्टवेयर को नई जरूरतों के अनुसार अपडेट किया जा सकता है और समस्याओं को हल किया जा सकता है।

Advantages of Software Engineering Practice:

  1. सही Practice से सॉफ्टवेयर की गुणवत्ता बढ़ती है।
  2. व्यवस्थित तरीके से काम करने से समय और पैसा बचता है।
  3. सही तरीके से बनाया गया सॉफ्टवेयर अधिक विश्वसनीय होता है।
  4. सॉफ्टवेयर को भविष्य में आसानी से बढ़ाया जा सकता है।

Phases of Software Engineering Practice

1. Understand the Problem

सॉफ्टवेयर बनाने से पहले समस्या को अच्छी तरह समझना जरूरी है। इसमें निम्न बातें शामिल हैं:

स्टेकहोल्डर्स कौन हैं? (Who has a stake in the solution?): 

सॉफ्टवेयर से जुड़े लोग जैसे ग्राहक, उपयोगकर्ता, डेवलपर्स और कंपनी के मालिक। इन सभी की जरूरतों और अपेक्षाओं को समझना जरूरी है।

अज्ञात क्या है? (What are unknowns?):

समस्या से जुड़ी वे बातें जो अभी स्पष्ट नहीं हैं, उन्हें पहचानना और समझना।

क्या समस्या को छोटे हिस्सों में बांटा जा सकता है? (Can the problem be compartmentalized?): 

समस्या को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़कर उन्हें अलग-अलग हल करना आसान होता है।

क्या समस्या को ग्राफिकली दिखाया जा सकता है? (Can the problem be represented graphically?):

डायग्राम या चार्ट की मदद से समस्या को समझना और समझाना आसान होता है।

2. Plan the Solution

समस्या को समझने के बाद, समाधान की योजना बनाई जाती है। इसमें निम्न बातें शामिल हैं:

  • पहले से मौजूद समाधानों का उपयोग करना।
  • समस्या को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़कर उन्हें अलग-अलग हल करना।
  • समाधान को लागू करने के लिए एक स्पष्ट योजना बनाना।
  • सॉफ्टवेयर का एक ब्लूप्रिंट (खाका) तैयार करना।

3. Carry out the Plan

योजना बनाने के बाद, उसे लागू किया जाता है। इसमें निम्न बातें शामिल हैं:

  • कोड लिखते समय यह सुनिश्चित करना कि यह योजना के अनुसार है।
  • कोड और डिजाइन के बीच संबंध बनाए रखना।
  • हर हिस्से की जांच करना कि वह सही तरीके से काम कर रहा है।
  • डिजाइन और कोड की जांच करना ताकि गलतियों को पकड़ा जा सके।

4. Examine the Result

समाधान लागू करने के बाद, परिणाम की जांच की जाती है। इसमें निम्न बातें शामिल हैं:

  • हर हिस्से को अलग-अलग टेस्ट करना।
  • सॉफ्टवेयर से मिलने वाले परिणामों की जांच करना।
  • सॉफ्टवेयर को सभी की जरूरतों के अनुसार जांचना।

5. Control Changes to Software

सॉफ्टवेयर में बदलाव करते समय नियंत्रण बनाए रखना जरूरी है। इसमें निम्न बातें शामिल हैं:

  • कौन से बदलाव जरूरी हैं, यह तय करना।
  • बदलाव से होने वाले प्रभाव को समझना।
  • बदलाव को सही समय पर लागू करना।

6. Develop Iteratively

सॉफ्टवेयर को छोटे-छोटे हिस्सों में बनाना और हर हिस्से को बार-बार टेस्ट करना। इसमें निम्न बातें शामिल हैं:

  •   बड़े निवेश से पहले मुख्य जोखिमों को हल करना।
  •   शुरुआती चरणों में ही उपयोगकर्ताओं से फीडबैक लेना।
  • टेस्टिंग और इंटीग्रेशन को लगातार जारी रखना।

7. Use Component Based Architecture

सॉफ्टवेयर को छोटे-छोटे कंपोनेंट्स में बनाना। इसमें निम्न बातें शामिल हैं:

रीयूज (Using components permits reuse):

पहले से बने कंपोनेंट्स का उपयोग करना।

मेंटेनेंस और एक्सटेंसिबिलिटी (Improved maintainability and extensibility):

सॉफ्टवेयर को आसानी से मेंटेन और अपडेट करना।

मुख्यत: इन्हें 4 भागों में बांटा गया है जो इस प्रकार से हैं:

  1. Understand the problem
  2. Plan the solution
  3. Carry out the plan
  4. Examine the result

 

  1. Understand the problem

  •  समस्या की पहचान की जाती है।
  • समस्या क्या है?
  • समस्या का समाधान कैसे प्राप्त होगा?
  • समस्या का समाधान कौन करेगा?
  • समस्या के हल के लिए कैसे फंक्शन और कैसे बिहेवियर की आवश्यकता होगी?
  • क्या सॉफ्टवेयर बनाना है? क्या बना है? किन चीजों की जरूरत होगी?
  1. Plan the solution

  •  समस्या का हल निकलना। जब हमने प्रॉब्लम को समझ लिया, अब उसे कैसे हल किया जा सकता है?
  • क्या सॉफ्टवेयर बनाना है? जब यह पता कर लिया, तब यह पता करना है कि कैसे बनाना है।
  • किस मॉडल का उपयोग करना है?
  • कैसे इफेक्टिव इंप्लीमेंट किया जा सकता है?
  1. Carry out the plan

  • इस फेज में प्रॉब्लम का हल किया जाता है।
  • इस फेज में कोडिंग लिखी जाती है।
  • यहां डिजाइन मॉडल और सोर्स कोड लिखा जाता है।
  1. Examine the result

  • इस चरण में टेस्टिंग की जाती है और परिणाम दिए जाते हैं।
  • इस फेज में सॉफ्टवेयर के जितने भी खंड हैं, वे सभी की टेस्टिंग एक साथ की जा सकती है या नहीं, देखा जाता है।
  • साथ ही यह सॉफ्टवेयर स्टेकहोल्डर के अनुरूप है या नहीं, सभी फंक्शन सही से कार्य कर रहे हैं या नहीं, इस पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

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