Spiral Model in Hindi Software Engineering

Spiral Model in Hindi

Spiral Model  सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट का एक flexible model है, जो risk management और Iterative Development (चरणों में काम करने) पर फोकस करता है।

इस मॉडल का उपयोग बड़े अकार के मॉडल, बड़े बजट तथा उलझन (critical) वाले projects में किया जाता है। सर्वप्रथम इस मॉडल को सन 1986 में Barry Bohem द्वारा तैयार किता था।

इसे “spiral” इसलिए कहते हैं क्योंकि इसका प्रोसेस सर्पिल (कुंडली) की तरह rounded होता है। हर spiral में प्रोजेक्ट को छोटे-छोटे चरणों में बाँटकर काम किया जाता है। यह वॉटरफॉल मॉडल और प्रोटोटाइपिंग मॉडल से मिलकर बना है।

Phases Of Spiral Model

इस मॉडल के निम्न phases होते है:

  1. Planning & Requirement.
  2. Risk Analysis.
  3. Development and testing. 
  4. Evolution.
Spiral Model in Hindi Software Engineering

1. Planning & Requirement

इस phase में project की जरूरतें जैसे: planning, बजट, समय और requirements को एकत्रित किया जाता है।

Planning phase में यह discuss किया जाता है कि हमारी प्रोजेक्ट किस प्रकार की होगी? ग्राहक को क्या चाहिए? प्रोजेक्ट की प्रारूप कैसी होगी और कौन सी टेक्नोलॉजी इस्तेमाल किया जाएगा? यह सारी बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

2. Risk Analysis

इस पेज में risk का मूल्यांकन किया जाता है साथ ही प्रोजेक्ट में आने वाली संभावित problems (जैसे बजट कम पड़ना, टेक्नोलॉजी में गड़बड़ी) को पहचाना जाता है और उनका solution निकाला जाता है।

 इस phase में आने वाले रिस्क को काम करने के लिए डेवलपर को strategy बनानी पड़ती है।

3. Development & Testing

इस phase में सॉफ्टवेयर develop किया जाता है तथा इसमें development सारी प्रक्रिया होती है सॉफ्टवेयर डेवलप हो जाने के पश्चात इसमें टेस्टिंग का कार्य भी होता है।

Software बन जाने के पश्चात इसे यूजर द्वारा test किया जाता है कि कोई समस्या तो नहीं है। यदि कोई समस्या अथवा errer आती है तो उसे पुनः developer को सौंप दिया जाता है।

उदाहरण: सॉफ्टवेयर का एक छोटा वर्जन (prototype) बनाकर उसे टेस्ट किया जाता है।  जैसे: “ऐप का एक बेसिक वर्जन बनकर, उसमें लॉगिन पेज, और चेक किया जाता है कि काम कर रहा है या नहीं।” 

4. Evaluation

Evaluation phase में software को end user को दे दिया जाता है और उसने फीडबैक लेकर उसमें मौजूद कमियों को सुधार किया जाता है।

दूसरे शब्दों में, Customer या team प्रोजेक्ट को रिव्यू करती है। अगर सब ठीक है, तो अगले step (सर्पिल) की प्लानिंग शुरू होती है। अगर नहीं, तो पुराने phases दोहराए जाते हैं। 

Advantages

  1. सभी phases (सर्पिल) में risk का analysis होता है, इसलिए समस्याएँ शुरुआत में ही पता चल जाती हैं।
  2. ग्राहक की नई जरूरतें या बदलाव प्रत्येक phase में शामिल किए जा सकते हैं।
  3. प्रत्येक phase के बाद ग्राहक को प्रोटोटाइप दिखाया जाता है, इसलिए अंत में कोई हैरानी नहीं होती।
  4. इसमें जटिल सॉफ्टवेयर के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम होता है।

Disadvantages

  1. यह बहुत ही खर्चीला (Costly) होता हैं। बार-बार प्लानिंग, टेस्टिंग और रिस्क एनालिसिस से लागत बढ़ सकती है।
  2. इसमें Time-Consuming ज्यादा होता है क्योंकि प्लानिंग और एनालिसिस की प्रक्रिया लंबी होती है, इसलिए प्रोजेक्ट देरी से पूरा हो सकता है।
  3. Risk analysis और मैनेजमेंट के लिए अनुभवी टीम (विशेषज्ञ)की जरूरत होती है। नए लोग इसे हैंडल नहीं कर पाते।
  4. यह साधारण सॉफ्टवेयर (जैसे छोटी वेबसाइट) के लिए यह मॉडल जटिल और अनावश्यक है।

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